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सांविधानिक विधि

नाबालिग का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना गैरकानूनी, अनैतिक

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 03-Aug-2023

न्यायालय ने माना कि 18 वर्ष से कम उम्र का आरोपी किसी बालिग लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर सुरक्षा नहीं मांग सकता। (सलोनी यादव और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य) (इलाहाबाद उच्च न्यायालय)

चर्चा में क्यों?

18 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति लिव-इन-रिलेशनशिप में नहीं रह सकता है और यह न केवल अनैतिक बल्कि अवैध कार्य होगा, जैसा कि सलोनी यादव और अन्य बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था।

पृष्ठभूमि

19 वर्षीय लड़की के परिवार द्वारा भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की धारा 363, 366 के तहत अपराध के लिये 17 वर्षीय मुस्लिम लड़के के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा शुरू किया गया था।

मामला यह था कि दोनों याचिकाकर्त्ता 27 अप्रैल, 2023 को एक-दूसरे के साथ रहने लगे और 30 अप्रैल, 2023 को लड़की के परिवार के सदस्यों द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गयी।

वर्तमान याचिका भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366 के तहत 30 अप्रैल, 2023 की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की प्रार्थना के साथ दायर की गयी है, उपरोक्त मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं की जायेगी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की पीठ ने कहा कि 18 वर्ष से कम उम्र का आरोपी किसी बालिग लड़की यानी 18 वर्ष से अधिक उम्र की लड़की के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के आधार पर सुरक्षा नहीं मांग सकता है।
  • न्यायालय ने किरण रावत और अन्य बनाम सचिव, गृह विभाग, लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2023) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व फैसले का जिक्र करते हुए कहा यह कहा कि नाबालिग लड़का मुस्लिम है, इसलिये, लड़की के साथ उसका रिश्ता मुस्लिम कानून के अनुसार 'ज़िना' है और इस प्रकार, अस्वीकार्य है।

लिव-इन-रिलेशनशिप

  • लिव-इन रिलेशन यानी साथ रहने योग्य एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके तहत दो लोग भावनात्मक और/या यौन रूप से अंतरंग संबंध में दीर्घकालिक या स्थायी आधार पर एक साथ रहने का फैसला करते हैं।
  • यह शब्द प्रायः उन प्रेमी युगलों पर लागू होता है, जिनका विवाह नहीं हुआ है।
  • एस. खुशबू बनाम कन्नियाम्मल और अन्य (2010) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि:
    • बिना विवाह के पुरुष और महिला का एक साथ रहना अपराध नहीं माना जा सकता।
    • लिव-इन रिलेशनशिप या विवाह पूर्व यौन संबंध पर रोक लगाने वाला कोई कानून नहीं था।
    • एक साथ रहना भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत आता है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
  • कुछ विदेशी देश जिन्होंने लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी है, वे हैं स्कॉटलैंड, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि।

कानूनी प्रावधान

भारतीय दंड संहिता

यह खबर आईपीसी की धारा 363 और 366 से संबंधित है, जो इस प्रकार है:

  • धारा 363- अपहरण के लिये सजा - जो कोई भी 1 [भारत] से या वैध संरक्षकता से किसी भी व्यक्ति का अपहरण करेगा, उसे सात वर्ष की अवधि के लिये कारावास की सजा दी जायेगी, जो जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा।
  • धारा 366 - विवाह आदि के करने को विवश करने के लिये किसी स्त्री को व्यपहृत करना, अपहृत करना या उत्प्रेरित करना - भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के अनुसार, जो कोई किसी स्त्री का उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिये उस स्त्री को विवश करने के आशय से या वह विवश की जाएगी यह संभाव्य मानते हुए अथवा अवैध संभोग करने के लिये उस स्त्री को विवश करना या बहकाना या वह स्त्री अवैध संभोग के लिये विवश या बहक जाएगी यह संभाव्य जानते हुए व्यपहरण या अपहरण करेगा, तो उसे किसी निश्चित अवधि के लिये कारावास की सजा सुनाई जएगी, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा;  जो कोई इस संहिता या प्राधिकरण के दुरुपयोग या मज़बूर कर किसी भी विधि में परिभाषित आपराधिक धमकियों के माध्यम से किसी स्त्री को किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संभोग करने के लिये विवश करने या बहकाने के आशय से या वह स्त्री विवश या बहक जाएगी यह संभाव्य जानते हुए उस स्त्री को किसी स्थान से जाने के लिये उत्प्रेरित करेगा, उसे भी उपरोक्त प्रकार से दंडित किया जाएगा।

भारत का संविधान

अनुच्छेद 21 - जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा - विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।

भारत में लिव इन रिलेशनशिप का विधायी पहलू

घरेलू हिंसा अधिनियम (DV ACT), 2005

  • इस अधिनियम की धारा 2 (f) के तहत विशेष रूप से उल्लेख किया गया है, कि यह न केवल विवाहित युगलों को अपने दायरे में लेता है, बल्कि उन रिश्तों को भी लेता है जो विवाह की प्रकृति में हैं और लिव-इन-रिलेशनशिप के लिये इसका मार्ग प्रशस्त करते हैं।
    • धारा 2 - परिभाषाएँ (f) घरेलू संबंध का अर्थ दो व्यक्तियों के बीच का संबंध है, जो किसी भी समय एक साझा घर में एक साथ रहते हैं या जब वे सजातीयता, विवाह, या किसी अन्य प्रकृति के रिश्ते, गोद लेने या परिवार के सदस्य संयुक्त परिवार के रूप में एक साथ रह रहे हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973

  • धारा 125 के अनुसार एक महिला साथी भरण-पोषण का दावा कर सकती है, यदि उसका रिश्ता लिव-इन रिलेशनशिप की प्रकृति के अनुरूप है, इसके अतिरिक्त वह भरण-पोषण की हकदार होगी।
    • चनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार सिंह कुशवाह एवं अन्य, (2010) में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि "हमारी राय है कि 'पत्नी' शब्द की एक व्यापक और विस्तृत व्याख्या की जानी चाहिये, जिसमें उन मामलों को भी शामिल किया जाए जिसमें एक पुरुष और महिला काफी लंबे समय से पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिये विवाह का सख्त साक्ष्य पूर्व शर्त के अनुरूप नहीं होना चाहिये, ताकि धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लाभकारी प्रावधान की सच्ची भावना और सच्चे अर्थों को पूरा किया जा सके।